….कभी तुमने चखा है
सिगरेट के धुंध को….
उमड़ती हैं ये जब
आकार बदल बदल कर
बनती हैं बहुत सी लकीरे….
भर जाता है तब
पूरा शहर
और छिप जाता इंसान तब……
जब खो जाओ तुम
उन उमड़ती टेड़ी मेड़ी लकीरों में
तब मुट्ठी में
कैद करना उन्हें
लाना अपने अधरों के करीब….
और सींच उन्हें
अपनो होंठों से
फिर चखना उन्हें तुम….
क्या कभी तुमने
जलते सिगरेट को अपने जिस्म से
स्पर्श कराया है….
करना एक बार तुम
उस बालकनी में खड़े होके तब
जब अन्तिम पहर गुजर रहा हो
तिमिर रजनी हो
गली में सन्नाटा हो
हवाओं में शोर हो….
एक बारगी कराना तुम
अपने जिस्म पर स्पर्श
बहुत अच्छा लगता है मुझे….
जैसे जलते देह को
चंदन का लेप मिल गया हो….
उन जख्मों को देख मुझे
ख्याल न रहता मन के जख्मों को….!!!🍁
#ज़िद्दी
#Ziddynidhi
मेरे दिये हुए दो तस्वीरों से आपने एक ज़िंदगी कि हकीकत लिख दिया है। हर जज्बात को बयान किया है। बहुत हि दर्दनाक है।
LikeLiked by 2 people
Han nhi se likhne ka vichar aya 😊
LikeLiked by 1 person
Yanhi *
LikeLiked by 1 person
अद्भत अविस्मरणीय लेखन 👌
LikeLiked by 2 people
Thanks Rudr 😊
LikeLike
हमनें वो सब किया है जो, जो तुमने लिखा है गिल्लू 😊😊
महसूस किया है… वो ठंडे ज़िस्म पर गर्म सिगरेट का स्पर्श उफ़्फ़ 😍😍
LikeLiked by 2 people
बड़ा बेसब्र होता है ख्याल किसी का👌👌
LikeLiked by 2 people
😊 हां
LikeLiked by 1 person