…कभी तुमने….

….कभी तुमने चखा है
सिगरेट के धुंध को….

उमड़ती हैं ये जब
आकार बदल बदल कर
बनती हैं बहुत सी लकीरे….

भर जाता है तब
पूरा शहर
और छिप जाता इंसान तब……

जब खो जाओ तुम
उन उमड़ती टेड़ी मेड़ी लकीरों में
तब मुट्ठी में
कैद करना उन्हें
लाना अपने अधरों के करीब….

और सींच उन्हें
अपनो होंठों से
फिर चखना उन्हें तुम….

क्या कभी तुमने
जलते सिगरेट को अपने जिस्म से
स्पर्श कराया है….

करना एक बार तुम
उस बालकनी में खड़े होके तब
जब अन्तिम पहर गुजर रहा हो
तिमिर रजनी हो
गली में सन्नाटा हो
हवाओं में शोर हो….

एक बारगी कराना तुम
अपने जिस्म पर स्पर्श
बहुत अच्छा लगता है मुझे….

जैसे जलते देह को
चंदन का लेप मिल गया हो….

उन जख्मों को देख मुझे
ख्याल न रहता मन के जख्मों को….!!!🍁
#ज़िद्दी

#Ziddynidhi

8 thoughts on “…कभी तुमने….”

  1. मेरे दिये हुए दो तस्वीरों से आपने एक ज़िंदगी कि हकीकत लिख दिया है। हर जज्बात को बयान किया है। बहुत हि दर्दनाक है।

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  2. हमनें वो सब किया है जो, जो तुमने लिखा है गिल्लू 😊😊

    महसूस किया है… वो ठंडे ज़िस्म पर गर्म सिगरेट का स्पर्श उफ़्फ़ 😍😍

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